।। सत्संग दीक्षा।।

96

स्वामिनारायणः साक्षादक्षराधिपतिर्हरिः।

परमात्मा परब्रह्म भगवान् पुरुषोत्तमः॥९६॥

Swaminarayan Bhagwan, the sovereign of Akshar, is the manifest form of Paramatma Parabrahman Purushottam Hari. (96)

अक्षराधिपति भगवान श्रीस्वामिनारायण साक्षात् परमात्मा परब्रह्म पुरुषोत्तम श्रीहरि हैं। (९६)

97

स एकः परमोपास्य इष्टदेवो हि नः सदा।

तस्यैव सर्वदा भक्तिः कर्तव्याऽनन्यभावतः॥९७॥

He alone is forever our ishtadev worthy of supreme upāsanā. One should always offer singular devotion to him only. (97)

एकमात्र वे ही सदैव हमारे परम उपास्य इष्टदेव हैं। उनकी ही अनन्य भाव से सदा भक्ति करें। (९७)

98

साक्षाद् ब्रह्माऽक्षरं स्वामी गुणातीतः सनातनम्।

तस्य परम्पराऽद्याऽपि ब्रह्माऽक्षरस्य राजते॥९८॥

Gunatitanand Swami is the manifest form of the eternal Aksharbrahman. This Aksharbrahman paramparā is manifest even today. (98)

गुणातीतानंद स्वामी साक्षात् सनातन अक्षरब्रह्म हैं। उस अक्षरब्रह्म की परंपरा आज भी विद्यमान है। (९८)

99

गुणातीतसमारब्ध-परम्पराप्रतिष्ठितः।

प्रकटाऽक्षरब्रह्मैकः संप्रदायेऽस्ति नो गुरुः॥९९॥

In the Sampraday’s tradition of gurus that began with Gunatitanand Swami, only the present form of Aksharbrahman is our guru. (99)

संप्रदाय में गुणातीतानंद स्वामी से प्रारंभ हुई गुरुपरंपरा में स्थित प्रकट अक्षरब्रह्म ही एकमात्र हमारे गुरु हैं। (९९)

100

एक एवेष्टदेवो नः एक एव गुरुस्तथा।

एकश्चैवाऽपि सिद्धान्त एवं नः एकता सदा॥१००॥

Our ishtadev is the same, our guru is the same and our siddhānt is also the same – thus, we are always united. (100)

हमारे इष्टदेव एक ही हैं, गुरु एक ही हैं और सिद्धांत भी एक ही है। इस प्रकार हमारी सदैव एकता है। (१००)