।। सत्संग दीक्षा।।

91

पुरुषोत्तममूर्त्या तद्-मध्यखण्डे यथाविधि।

सहितं स्थाप्यते मूर्तिरक्षरस्याऽपि ब्रह्मणः॥९१॥

To fulfill this ordinance and to grant moksha all, divine mandirs are devoutly constructed and the murti of Aksharbrahman is also ceremoniously consecrated with Purushottam Bhagwan in the central shrines [of these mandirs]. (90–91)

(परब्रह्म के साथ अक्षरब्रह्म की समान सेवा करने की) उस आज्ञा के अनुसार सभी का कल्याण करने हेतु दिव्य मंदिरों का निर्माण भक्तिपूर्वक किया जाता है, और उनके मध्यखंड में पुरुषोत्तम भगवान की मूर्ति के साथ अक्षरब्रह्म की मूर्ति भी विधिवत् स्थापित की जाती है। (९०-९१)

92

एवमेव गृहाद्येषु कृतेषु मन्दिरेष्वपि।

मध्ये प्रस्थाप्यते नित्यं साऽक्षरः पुरुषोत्तमः॥९२॥

Similarly, Aksharbrahman and Purushottam Bhagwan are also always consecrated in the central shrines of mandirs in homes and other places. (92)

उसी प्रकार घर आदि स्थानों में निर्मित मंदिरों में भी मध्य में सदा अक्षरब्रह्म सहित पुरुषोत्तम भगवान को स्थापित किया जाता है। (९२)

93

प्रातः सायं यथाकालं सर्वसत्सङ्गिभिर्जनैः।

निकटं मन्दिरं गम्यं भक्त्या दर्शाय प्रत्यहम्॥९३॥

Daily, in the morning, evening or at another convenient time, all satsangis should devoutly go to a nearby mandir for darshan. (93)

सभी सत्संगी प्रातःकाल, संध्या समय अथवा अपने अनुकूल समय पर प्रतिदिन भक्तिपूर्वक समीपवर्ती मंदिर में दर्शन करने जाएँ। (९३)

94

यथा स्वधर्मरक्षा स्यात् तथैव वस्त्रधारणम्।

सत्सङ्गिनरनारीभिः करणीयं हि सर्वदा॥९४॥

All satsangi men and women should always dress in a manner that safeguards their dharma. (94)

सभी सत्संगी नर-नारी सदैव जिस प्रकार अपने धर्म की रक्षा हो, उसी प्रकार वस्त्र धारण करें। (९४)

95

सत्सङ्गदृढतार्थं हि सभार्थमन्तिके स्थितम्।

गन्तव्यं प्रतिसप्ताहं मन्दिरं वाऽपि मण्डलम्॥९५॥

To strengthen one’s satsang, one should attend the weekly assemblies held at a nearby mandir or center. (95)

सत्संग की दृढता के लिए हर सप्ताह समीपवर्ती मंदिर या मंडल में सत्संग-सभा के लिए जाएँ। (९५)