भक्तिमार्गविरोधी स्यात् तस्य सङ्गं न चाऽऽचरेत्॥२२१॥
One should not associate with those who oppose taking refuge in a guru, Vedic texts or the path of bhakti. (221)
जो मनुष्य गुरुशरणागति का विरोध करता हो, वैदिक शास्त्रों का खंडन करता हो, भक्तिमार्ग का विरोध करता हो उसका संग न करें। (२२१)
222
बुद्धिमानपि लोके स्याद् व्यावहारिककर्मसु।
न सेव्यो भक्तिहीनश्चेच्छास्त्रपारङ्गतोऽपि वा॥२२२॥
One should avoid the company of a person who is devoid of devotion, even if such a person is intelligent in worldly activities or learned in the shastras. (222)
कोई मनुष्य लोक में व्यावहारिक कार्यों में बुद्धिमान हो अथवा शास्त्रों में पारंगत भी हो फिर भी यदि वह भक्ति से रहित हो तो उसका संग न करें। (२२२)
223
श्रद्धामेव तिरस्कृत्य ह्याध्यात्मिकेषु केवलम्।
पुरस्करोति यस्तर्कं तत्सङ्गमाचरेन्नहि॥२२३॥
One should not associate with those who ridicule faith in spiritual matters and promote logic alone. (223)
आध्यात्मिक विषयों में श्रद्धा का ही तिरस्कार करके जो मनुष्य केवल तर्क को ही प्राधान्य देता हो उसकी संगत न करें। (२२३)
224
सत्सङ्गेऽपि कुसङ्गो यो ज्ञेयः सोऽपि मुमुक्षुभिः।
तत्सङ्गश्च न कर्तव्यो हरिभक्तैः कदाचन॥२२४॥
Mumukshu devotees should also recognize kusang within satsang and should never associate with it. (224)
मुमुक्षु हरिभक्त सत्संग में छिपे हुए कुसंग को भी जानें तथा उसका संग कदापि न करें। (२२४)
225
हरौ गुरौ च प्रत्यक्षे मनुष्यभावदर्शनः।
शिथिलो नियमे यश्च न तस्य सङ्गमाचरेत्॥२२५॥
One should avoid the company of those who are lax in observing niyams or see human traits in the manifest form of Bhagwan or the guru. (225)
जो मनुष्य प्रत्यक्ष भगवान में और गुरु में मनुष्यभाव देखता हो तथा नियम-पालन में शिथिल हो उसका संग न करें। (२२५)