।। सत्संग दीक्षा।।

106

सर्वकर्ता च साकारः सर्वोपरि सदा हरिः।

मुमुक्षूणां विमोक्षाय प्रकटो वर्तते सदा॥१०६॥

Bhagwan is eternally the all-doer, with form and supreme; he always remains manifest for the moksha of mumukshus. (106)

भगवान सदैव सर्वकर्ता, साकार, सर्वोपरि हैं और मुमुक्षुओं की मुक्ति के लिए सदा प्रकट रहते हैं। (१०६)

107

ब्रह्माऽक्षरगुरुद्वारा भगवान् प्रकटः सदा।

सहितः सकलैश्वर्यैः परमाऽऽनन्दमर्पयन्॥१०७॥

Through the Aksharbrahman guru, Bhagwan always remains present with all of his divinity and bestows utmost bliss. (107)

अक्षरब्रह्मस्वरूप गुरु के द्वारा भगवान अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ, परमानंद प्रदान करते हुए सदा प्रकट रहते हैं । (१०७)

108

प्रीतिः कार्याऽऽत्मबुद्धिश्च ब्रह्माऽक्षरे गुरौ दृढा।

प्रत्यक्षभगवद्भावात् सेव्यो ध्येयः स भक्तितः॥१०८॥

One should foster intense love and ātmabuddhi for the Aksharbrahman guru. Believing the guru as the manifest form of Bhagwan, one should serve him and meditate on him with devotion. (108)

अक्षरब्रह्म गुरु में दृढ प्रीति एवं आत्मबुद्धि करें, प्रत्यक्ष भगवान के भाव से भक्तिपूर्वक उनकी सेवा तथा ध्यान करें। (१०८)

109

स्वामिनारायणो मन्त्रो दिव्यश्चाऽलौकिकः शुभः।

जप्योऽयं सकलैर्भक्तैर्दत्तोऽयं हरिणा स्वयम्॥१०९॥

The ‘Swaminarayan’ mantra is divine, beyond this world and auspicious. Shri Hari himself bestowed this mantra. All devotees should chant it. In this mantra, understand that ‘Swami’ refers to Aksharbrahman, and ‘Narayan’ refers to Purushottam, who is superior to Aksharbrahman. (109–110)

स्वामिनारायण मंत्र दिव्य, अलौकिक एवं शुभ मंत्र है। स्वयं श्रीहरि ने यह मंत्र दिया है। सभी भक्त उसका जप करें। इस मंत्र में ‘स्वामि’ शब्द को अक्षरब्रह्म का तथा ‘नारायण’ शब्द को उस अक्षरब्रह्म से परे स्थित परब्रह्म का द्योतक जानें। (१०९-११०)

110

अक्षरं ब्रह्म विज्ञेयं मन्त्रे स्वामीति शब्दतः।

नारायणेति शब्देन तत्परः पुरुषोत्तमः॥११०॥

The ‘Swaminarayan’ mantra is divine, beyond this world and auspicious. Shri Hari himself bestowed this mantra. All devotees should chant it. In this mantra, understand that ‘Swami’ refers to Aksharbrahman, and ‘Narayan’ refers to Purushottam, who is superior to Aksharbrahman. (109–110)

स्वामिनारायण मंत्र दिव्य, अलौकिक एवं शुभ मंत्र है। स्वयं श्रीहरि ने यह मंत्र दिया है। सभी भक्त उसका जप करें। इस मंत्र में ‘स्वामि’ शब्द को अक्षरब्रह्म का तथा ‘नारायण’ शब्द को उस अक्षरब्रह्म से परे स्थित परब्रह्म का द्योतक जानें। (१०९-११०)