May mutual unity, suhradbhāv, friendship, compassion, tolerance and love flourish among all people. (306)
सभी मनुष्यों में परस्पर एकता, सुहृद्भाव, मैत्री, करुणा, सहनशीलता तथा स्नेह की अभिवृद्धि हो। (३०६)
307
सत्सङ्गे दिव्यसम्बन्धाद् ब्रह्मणः परब्रह्मणः।
सर्वेषां जायतां दार्ढ्यं निर्दोषदिव्यभावयोः॥३०७॥
Through the divine association of Brahman and Parabrahman, may all strengthen nirdoshbhāv and divyabhāv towards the Satsang. (307)
ब्रह्म एवं परब्रह्म के दिव्य संबंध से सत्संग में सभी में निर्दोषभाव एवं दिव्यभाव की दृढता हो। (३०७)
308
अक्षररूपतां सर्वे संप्राप्य स्वात्मनि जनाः।
प्राप्नुयुः सहजानन्दे भक्तिं हि पुरुषोत्तमे॥३०८॥
May all identify their ātmā as aksharrup and offer devotion to Purushottam Sahajanand. (308)
सभी जन अपनी आत्मा में अक्षररूपता पाकर पुरुषोत्तम सहजानंद की भक्ति प्राप्त करें। (३०८)
309
माघस्य शुक्लपञ्चम्याम् आरब्धमस्य लेखनम्।
पवित्रे विक्रमाब्दे हि रसर्षिखद्विसंमिते॥३०९॥
The writing of this shastra began on Magha (Maha) sud 5 [30 January 2020 CE] of Vikram Samvat 2076 and was completed on Chaitra sud 9 [2 April 2020 CE], on the divine birthday celebration of Swaminarayan Bhagwan. (309–310)
विक्रम संवत् २०७६ के माघ शुक्ल पंचमी को इस शास्त्र के लेखन का आरंभ हुआ एवं चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान श्रीस्वामिनारायण के दिव्य जन्म-महोत्सव पर यह संपूर्ण हुआ। (३०९-३१०)
310
चैत्रशुक्लनवम्यां च स्वामिनारायणप्रभोः।
तच्च संपूर्णतां प्राप्तं दिव्यजन्ममहोत्सवे॥३१०॥
The writing of this shastra began on Magha (Maha) sud 5 [30 January 2020 CE] of Vikram Samvat 2076 and was completed on Chaitra sud 9 [2 April 2020 CE], on the divine birthday celebration of Swaminarayan Bhagwan. (309–310)
विक्रम संवत् २०७६ के माघ शुक्ल पंचमी को इस शास्त्र के लेखन का आरंभ हुआ एवं चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान श्रीस्वामिनारायण के दिव्य जन्म-महोत्सव पर यह संपूर्ण हुआ। (३०९-३१०)