।। सत्संग दीक्षा।।

276

शुभाऽशुभप्रसङ्गेषु महिमसहितं जनः।

पवित्रां सहजानन्द-नामावलिं पठेत् तथा॥२७६॥

On auspicious and inauspicious occasions, one should recite the sacred ‘Sahajanand Namavali’ while understanding its glory. (276)

शुभ तथा अशुभ प्रसंगों में महिमासहित पवित्र सहजानंद नामावली का पाठ करें। (२७६)

277

कालो वा कर्म वा माया प्रभवेन्नैव कर्हिचित्।

अनिष्टकरणे नूनं सत्सङ्गाऽऽश्रयशालिनाम्॥२७७॥

Kāl, karma and māyā can never harm those who have taken refuge in satsang. (277)

जिन्हें सत्संग का आश्रय प्राप्त हुआ है, उनका अनिष्ट करने में काल, कर्म या माया कदापि समर्थ नहीं हैं। (२७७)

278

अयोग्यविषयाश्चैवम् अयोग्यव्यसनानि च।

आशङ्काः संपरित्याज्याः सत्सङ्गमाश्रितैः सदा॥२७८॥

Satsangis should always renounce inappropriate indulgence in the sense pleasures, addictions and superstitions. (278)

सत्संगी अनुचित विषय, व्यसन तथा आशंकाओं का सदैव त्याग करें। (२७८)

279

नैव मन्येत कर्तृत्वं कालकर्मादिकस्य तु।

मन्येत सर्वकर्तारम् अक्षरपुरुषोत्तमम्॥२७९॥

Do not believe kāl, karma and other factors to be the doers. One should realize Akshar-Purushottam Maharaj as the all-doer. (279)

काल, कर्म आदि को कर्ता न मानें। अक्षरपुरुषोत्तम महाराज को सर्वकर्ता मानें। (२७९)

280

विपत्तिषु धरेद्धैर्यं प्रार्थनं यत्नमाचरेत्।

भजेत दृढविश्वासम् अक्षरपुरुषोत्तमे॥२८०॥

In difficult times, one should remain patient, offer prayers, persevere and keep firm faith in Akshar-Purushottam Maharaj. (280)

विपत्ति के समय धैर्य धारण करें, प्रार्थना करें और पुरुषार्थ करें तथा अक्षरपुरुषोत्तम महाराज के प्रति दृढ विश्वास रखें। (२८०)