।। सत्संग दीक्षा।।

61

मध्ये तु स्थापयेत्तत्र ह्यक्षरपुरुषोत्तमौ।

स्वामिनं हि गुणातीतं महाराजं च तत्परम्॥६१॥

In the center, one should arrange the murtis of Akshar and Purushottam, that is, Gunatitanand Swami and the one who transcends him, [Shriji] Maharaj. (61)

इसमें मध्य में अक्षर तथा पुरुषोत्तम की मूर्ति स्थापित करें अर्थात् गुणातीतानंद स्वामी तथा उनके भी अधिपति भगवान श्री स्वामिनारायण को स्थापित करें। (६१)

62

प्रमुखस्वामिपर्यन्तं प्रत्येकगुरुमूर्तयः।

प्रस्थाप्याः सेवितानां च प्रत्यक्षं मूर्तयः स्वयम्॥६२॥

One should then place the murtis of each guru up to Pramukh Swami Maharaj and the murtis of the gurus whom one has personally served. (62)

तत्पश्चात् प्रमुखस्वामी जी महाराज-पर्यंत प्रत्येक गुरु की मूर्ति स्थापित करें तथा जिन गुरुओं का स्वयं ने प्रत्यक्ष सेवन किया हो, उन गुरुओं की मूर्तियाँ स्थापित करें। (६२)

63

आह्वानश्लोकमुच्चार्य हरिं च गुरुमाह्वयेत्।

हस्तौ बद्ध्वा नमस्कारं कुर्याद्धि दासभावतः॥६३॥

Thereafter, one should invite [Shriji] Maharaj and the gurus by reciting the Ahvan Mantra. One should bow with folded hands and with dāsbhāv. (63)

उसके पश्चात् आह्वान श्लोक बोलकर भगवान तथा गुरुओं का आह्वान करें। दोनों हाथ जोड़कर दासभाव से नमस्कार करें। (६३)

64

उत्तिष्ठ सहजानन्द श्रीहरे पुरुषोत्तम।

गुणातीताऽक्षर ब्रह्मन्नुत्तिष्ठ कृपया गुरो॥६४॥

“O Sahajanand Shri Hari! O Purushottam! O Aksharbrahman Gunatit gurus! Please shower compassion [upon me] and awaken. Please come forth from my ātmā, to accept my puja. I become more blessed due to your divine presence and darshan.”64

हे सहजानंद श्रीहरि! हे पुरुषोत्तम! कृपया जागिए। हे अक्षरब्रह्म गुणातीत गुरु! कृपया जागिए। मेरी पूजा को स्वीकार करने के लिए मेरी आत्मा में से पधारिए। आपके दिव्य सांनिध्य और दर्शन से मेरे सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है।

65

आगम्यतां हि पूजार्थम् आगम्यतां मदात्मतः।

सान्निध्याद् दर्शनाद् दिव्यात् सौभाग्यं वर्धते मम॥६५॥

“O Sahajanand Shri Hari! O Purushottam! O Aksharbrahman Gunatit gurus! Please shower compassion [upon me] and awaken. Please come forth from my ātmā, to accept my puja. I become more blessed due to your divine presence and darshan.”

हे सहजानंद श्रीहरि! हे पुरुषोत्तम! कृपया जागिए। हे अक्षरब्रह्म गुणातीत गुरु! कृपया जागिए। मेरी पूजा को स्वीकार करने के लिए मेरी आत्मा में से पधारिए। आपके दिव्य सांनिध्य और दर्शन से मेरे सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है।